कांग्रेस पार्टी के इस आधिकारिक रूप से घोषित किए जाने वाले फैसले के प्रकाश में, काँग्रेस पार्टी ने राम मंदिर के उद्घाटन समारोह में भाग न लेने का निर्णय लिया है। इस मुद्दे पर उनका यह निर्णय सामाजिक, राजनीतिक, और धार्मिक संवैधानिकता के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण घटना है।kaangres paartee ka raam mandir udghaatan mein nahin jaane ka phaisala uchit ya anuchit ?
राम मंदिर के मुद्दे पर काँग्रेस के इतिहासिक पृष्ठभूमि को समझना महत्वपूर्ण है।…
राम मंदिर के मुद्दे की इतिहासिक पृष्ठभूमि में कांग्रेस पार्टी का योगदान कुछ स्वरूपों में प्रमुख रूप से हुआ है।
अयोध्या बाबरी मस्जिद मामला (1949): भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने 1949 में अयोध्या बाबरी मस्जिद मामले में प्रमुख भूमिका निभाई थी। इस समय भूमि पर विवाद उत्पन्न हो गया था और वहां राम लला की प्रतिमा रखी गई थी।
राजीव गांधी की स्थिति (1986): राजीव गांधी ने 1986 में कांग्रेस द्वारा अयोध्या मुद्दे को सुलझाने का प्रयास किया था, लेकिन इसमें सफलता प्राप्त नहीं हुई। उन्होंने यह भी कहा था कि मस्जिद और मंदिर के बीच समझौता करना चाहिए।
अयोध्या के विशेषाधिकार का समर्थन (1991): विशेषाधिकार और सामंजस्यपूर्ण समाधान की ओर कांग्रेस की प्रेरित योजना का अभिप्रेत होना शुरू हुआ था। इस समय कांग्रेस ने अपने चुनावी घोषणापत्र में भी यह स्पष्ट कर दिया था कि वह समझौता करने के लिए तैयार है।
राजीव गांधी ने विवाद के समाधान के लिए गंभीर प्रयास किए थे लेकिन 1991 मे वे शहीद हो गए , काँग्रेस जब तक वे जिंदा थे इस मुद्दे पर चर्चा करने की कड़ी कोशिशें की कर रही थीं। उनकी मौत के बाद, कांग्रेस ने उनकी प्रेरणा के अनुसार इस मुद्दे पर काम करना जारी रखा, लेकिन यह विवाद बढ़ता गया।
इस प्रकार, कांग्रेस पार्टी ने राम मंदिर के मुद्दे में अपना योगदान तो दिया,लेकिन वह इसका समाधान हासिल नहीं कर पायी ।
1992 में बाबरी ढांचा ध्वस्त होने के बाद, अटलबिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी (भा.ज.पा.) की सरकार बनी। इस समय कांग्रेस पार्टी विवाद में सावधानी बरत रही थी और समझौते की दिशा में कदम नहीं बढ़ा रही थी।
नरसिंह राव की सरकार (1991-1996 के कार्यकाल में, कांग्रेस ने विवाद को सुलझाने के लिए सकारात्मक कदम नहीं उठाए। यह दौर मंदिर निर्माण के लिए बढ़ते हिन्दू-मुस्लिम विवादों के रूप में जारी रहा।
कांग्रेस की स्थिति (1996-2004): 1996 में हुई चुनावों के बाद, कांग्रेस पार्टी ने राजनीतिक स्थिति में कमजोर हो गई और उसने फिर से मंदिर मुद्दे पर विचार व्यक्त करने का प्रयास किया।
सोनिया गांधी की नेतृत्व (2004-2014): सोनिया गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस ने फिर से अयोध्या मुद्दे को सुलझाने का प्रयास किया, लेकिन इसमें सफलता प्राप्त नहीं हुई।
राहुल गांधी का दृष्टिकोण (2014-वर्तमान): राहुल गांधी ने अपने नेतृत्व के दौरान धार्मिक सहमति, सद्भाव, और समाधान की बातें की हैं, लेकिन यह विवाद का समाधान हासिल करने में अब तक सफल नहीं हुआ है।
इस प्रकार, कांग्रेस पार्टी ने राम मंदिर के मुद्दे में अपना स्थान बनाए रखा है, लेकिन समाधान की कड़ी कोशिशें सफल नहीं रही हैं।
समापन में, काँग्रेस पार्टी का राम मंदिर उद्घाटन में नहीं जाने का निर्णय एक बड़ी चुनौतीपूर्ण पहलू है। काँग्रेस की हालत सांप के मुंह छछूंदर जैसी हो गई है ! फिर भी बहुसंख्यक हिन्दू समाज की भावनाओं को ध्यान मे रखते हुए कांग्रेस को अपना निर्णय पर पुनर्विचार करना चाहिए । हालांकि यह बात सही है कि भाजपा राम मंदिर को लेकर पूर्ण रूप से 2024 के लोकसभा चुनावों मे जबरजस्त मसाला भून रही है और उनके क्रिया कलापों से चारों शंकराचार्य भी नाराज है , उन्होंने भी मंदिर प्राण प्रतिष्ठा महोत्सव मे भाग लेने से मना कर दिया है । हालांकि शंकरचार्यों का मत राजनीतिक ना होकर सनातन परंपराओं के साथ खिलवाड़ को लेकर है । कांग्रेस के नेता आचार्य प्रमोद कृष्णन ने भी कांग्रेस के फैसले पर दुख प्रकट किया है । उधर अब इस बात से भी लोगों को सहमत होना पड़ेगा कि जिस लोकतंत्र मे बहुमत का फैसला सर्वोपरि है उसे देश मे बहुसंख्यक हिन्दू समाज की भावनाओं का सम्मान भी होना चाहिए । अतीत मे मुस्लिम बादशाहों द्वारा किया गया अत्याचार को वर्तमान के शासकों द्वारा मरहम लगाया जाना सुखद है । भारत भूमि शांति और सद्भाव के लिए जानी जाती है । जब इतिहास मे कई विभिन्न मतावलंबी भारत मे आए और यहा के मूल निवासियों ने सबको सम्मान और आश्रय दिया लेकिन इन्होंने बाद मे भारत की आत्मा कोही छिन्न भिन्न करने का प्रयास किया । सुधार की गुंजाइश अभी भी बनी हुयी है, इसलिए समस्त भारत वासियों को मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के प्रति आस्था और सम्मान रखना चाहिए ।